रेल इंजनों में मुख्यतः दो प्रकार की मोटरें लगाई जाती हैं
- डी सी सीरीज मोटर
- 3 फेज इंडक्शन मोटर
डी सी सीरीज मोटरें उच्च प्रारंभिक टार्क के लिए जानी जाती हैं। जिन्हें जितने अधिक प्रारंभिक भार के साथ चालू करें ये उतना ही अधिक प्रारंभिक टार्क उत्पन्न करती हैं और इनकी यही विशेषता इन्हें कर्षण के अनुकूल बनाती है। इसी वजह से लम्बे समय से परंपरागत विद्युत एवं डीजल इंजनों में कर्षण मोटर के तौर पर डी सी सीरीज मोटरें प्रयुक्त की जा रही हैं।
लेकिन समय के साथ ज्यादा शक्ति के इंजनों की आवश्यकता महसूस हुई, और ज्यादा शक्ति के इंजनों के लिए कर्षण मोटर की शक्ति बढ़ाया जाना जरूरी था जिसमें सबसे बड़ी बाधा बना डी सी सीरीज मोटर का आकार और वजन, जो कि पहले से ही अपने चरम पर थे और अब और अधिक बढ़ाए जाने की गुंजाइश न के बराबर थी अतः साल 1990 में 3 फेज ए सी इंडक्शन मोटर को डी सी सीरीज कर्षण मोटर के पर्याय की तरह इस्तेमाल करने के बारे में सोचा गया, लेकिन ए सी कर्षण मोटर को उच्च प्रारंभिक भार पर चालू करने लायक बनाने के लिए उसकी फ्रीक्वेंसी को नियंत्रित किया जाना आवश्यक था।
जो फ्रीक्वेंसी कंट्रोलर तब मौजूद थे वे आकार में काफी बड़े थे और कर्षण मोटरों की सप्लाई फ्रीक्वेंसी को नियंत्रित करने लायक क्षमता उनमें नहीं थी। लेकिन सेमीकंडक्टर फिजिक्स ने इस कार्य को आसान किया और MOSFET, GTO और फिर IGBT के रूप में हाई स्पीड स्विचिंग डिवाइस आ जाने के बाद 3 फेज इंडक्शन मोटरों को VVVF (Variable Voltage Variable Frequency) कंट्रोल तकनीक के तहत कर्षण मोटर की तरह इस्तेमाल करना बेहद आसान हो गया।
और फिर क्या डीजल और क्या विद्युत, नई तकनीक पर आधारित सभी इंजनों में यही मोटर उपयोग की जा रही हैं क्योंकि एक समान आउटपुट के लिए डी सी सीरीज मोटरों की तुलना में इनका भार और आकार काफी कम है, जिससे इंजनों में कर्षण मोटर के तौर पर लटकने वाले वजन में कमी आई तो क्षमता में बढ़ोतरी हुई।
इन मोटरों की संरचना एकदम सामान्य है अतः खराबियाँ कम आती हैं, इन मोटरों के साथ विद्युत इंजनों पर रीजनरेटिव ब्रेकिंग उपलब्ध है जिससे बिजली की अच्छी-खासी बचत हो रही है, इंजनों को आवधिक रखरखाव के लिए जल्दी-जल्दी शेड में लाने की आवश्यकता नहीं है अतः मरम्मत का खर्च कम हुआ है साथ ही ये इंजन भी ज्यादा लंबे समय तक सर्विस के लिए उपलब्ध रहने से आय में वृद्धि हो रही है।
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