Train Lighting in Hindi | गाड़ी प्रकाशन
Train Lighting: भारतीय रेलवे में पहली यात्री गाड़ी बोरीवन्दर (आज का छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनल CSTM) से थाणे के बीच चली जो कि दिन में 15:30 बजे चलकर 16:45 बजे 21 माईल (लगभग 34 कि.मी.) की दूरी तय कर अपने गंतव्य पर पहुँची।
इस तरह भारत में चलने वाली पहली यात्री गाड़ी के कोचों में किसी भी तरह की प्रकाश व्यवस्था(Train Lighting) की आवश्यकता ही महसूस नहीं हुई, लेकिन जैसे-जैसे लम्बी दूरी की गाड़ियाँ चलने लगी, तब कोच में प्रकाश व्यवस्था की आवश्यकता होने लगी और जैसा कि कहते हैं आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है, अतः कोच में प्रकाश व्यवस्था की जाने लगी.
भारतीय रेलों में सन् 1897 में पहली बार कोच में प्रकाश हेतु विजली का प्रयोग किया गया। भारतीय रेलों पर सर्वप्रथम एक्सल चालित सेल्फ जनरेशन हेतु डायनेमो का प्रयोग जोधपुर-बीकानेर रेलवे में जे.स्टोन एण्ड कम्पनी द्वारा 930 में किया गया।
विभिन्न गाड़ी प्रकाशन प्रणालियों में समय और आवश्यकतानुसार सुधार होने के बाद वर्तमान में निम्नलिखित 3 प्रणालियाँ काम में ली जा रही है –
- एक्सल चालित सेल्फ जनरेशन सिस्टम (SG)
- एण्ड ओन जनरेशन सिस्टम (EOG)
- हेड ओन जनरेशन सिस्टम (HOG)
Train Lighting एक्सल चालित शेल्फ जनऐशन सिस्टम (SG)
इस सिस्टम का उपयोग भारतीय रेलों के अधिकांश ICF कोचों में किया जाता है। जैसा कि इस सिस्टम के नाम से स्पष्ट हैं कि जब गाड़ी चलती है, तब उसका एक्सल, पुली व बेल्ट की सहायता से बोगी में, कोच के नीचे, लगा अल्टरनेटर भी घुमता है, पर्याप्त गति से गाड़ी चलने पर अल्टरनेटर के घुमने से बिजली बनती है जिसका उपयोग कोच में लाईट जलाने तथा पंखों को चलाने के लिये किया जाता है।
एक्सल से अल्टरनेटर घुमाने के लिये एक्सल तथा अल्टरनेटर की शाफ्ट पर एक-एक पुली लगी होती है जिस पर पट्टा (Belt) लगा होता है। साधारण यानि नोन ए.सी. ब्रॉडगेज कोचों में चार वी-बेल्ट लगाये जाते हैं, जबकि मीटर गेज कोचों में एक फ्लेट बेल्ट लगाया जाता है। अल्टरनेटर से प्राप्त 3 फेज ए.सी. बिजली को डी सी में बदलने तथा गाड़ी की अलग-अलग गति पर वोल्टेज को रेगुलेट करते हुये एक समान बनाये रखने के लिए आर.आर .यू. (रेक्टीफायर कम रेगुलेटिंग यूनिट) लगाया जाता है। इस तरह सेल्फ जनरेशन सिस्टम में कोच की लाईटें और पंखे डी .सी. सप्लाई से चलते हैं.
जब गाड़ी खड़ी हो, तब अल्टरनेटर से बिजली नहीं मिल पायेगी, तब कोच के लाईट, पंखें चलाने हेतु बैटरी की जरूरत पड़ती है। अत: सेल्फ जनरेशन कोचों में बैटरी लगाई जाती है। बैटरी से मिलने वाली 110 वोल्ट डी.सी. सप्लाई खड़ी गाड़ी के कोचों में लगे पंखे व लाईट को चलाने के लिये काम में ली जाती है .
यह डी.सी. सप्लाई कोच में लगे स्विच पेनल तक जाती हैं जहाँ चार स्विच लगे होते हैं जिनमें से पहले दो स्विच लाईट, तीसरा पंखे और चौथा ईएफटी के लिये होता है। ब्रॉडगेज कोचों में दोनों तरफ बफर के पास दो-दो ई.एफ टी. यानि कुल चार ई.एफ.टी. होती हैं जिनके लिये केवल एक स्विच होता है जिससे सप्लाई चालू या बंद कर सकते हैं और इस स्विच के ऊपर SPM/।&॥ लिखा होता है। यह स्विच कोच के दरवाजे के पीछे रोटरी स्विच पैनल में चौथे नम्बर पर लगा होता है। रोटरी स्विचों को ऑन या ऑफ करने के लिए एक स्लॉट कटी चाबी काम में ली जाती है.
जब कभी किसी कारण से किसी कोच में बिजली सप्लाई मिलना बंद हो जाती है, तो पास वाले कोच के एंड पैनल पर लगे किसी एक ई.एफ. टी. से केबल द्वारा विद्युत सप्लाई दी जाती है, इस तरह के कनेक्शन को, टेम्पररी कनेक्शन देना कहते हैं.